कई टुकड़ों को जोड़कर
एक तस्वीर बनाऊंगा शायद
किसी- किसी की मुस्कुराहट में
तेरी मासूम हंसी पाऊंगा शायद
किसी - किसी आहट पर रुक जाऊंगा
कोई आवाज सुन के चौंक जाऊंगा
कभी - कभी आखें मैं गीली कर लूंगा शायद
किसी कोने में बैठकर जी भर के रो लूंगा शायद
तुमको सामने बैठा समझ
खुद से ही कुछ बातें करूंगा
कभी हंसूंगा तो कभी लडूंगा
मैं तुम्हे भूलने की कोशिश में
हर रोज याद करूंगा शायद
हर बार जीने का वादा कर मरूंगा शायद
कुछ रास्तों से गुजरने से डरूंगा शायद
फिर खुद - ब- खुद उन राहों पर बढूंगा शायद
फिर सड़क के किनारे बैठ जाऊंगा
इस इंतजार में कि तुम आओगे
तुम नहीं आओगे शायद
एक बार फिर मुझे उदास कर जाओगे शायद
कभी जो खुद को अकेला पाऊंगा
तो कुछ तेरे नगमें गुनगुनाऊंगा
फिर कभी चुप होकर
दुनिया के शोर में गुम हो जाऊंगा
तेरे बिना सांस लेता रहूंगा शायद
जिंदा हूं ये दुनिया को धोखा
देता रहूंगा शायद
मैं चाहूंगा कि रात खत्म न हो
फिर दिन के उजाले में
कुछ नाकाम कोशिश करूंगा शायद
एक किताब में तेरी तस्वीर छुपा कर रखूंगा
तेरी कान की कोई बाली
तुझसे जुड़ी कोई निशानी
कुछ कागज के टुकड़े
फटे हुए , कुछ बिखरे
सब तेरी अमानत समझ के सहेजूंगा शायद
मैं चुपचाप रहूंगा पर
अपनी खामोशी से बहुत कुछ कहूंगा शायद
पुकारूंगा अपनी नजरों से तुमको
जब दूर- दूर तक न पाऊंगा शायद
तेरे बिना जिंदगी एक बोझ होगी
ये बोझ ढोते - ढोते गुजर जाऊंगा शायद
पर लबों पे तेरा नाम उस पल भी दुहराऊंगा शायद
तुझे याद करके जियूंगा और
याद करते मर जाऊंगा शायद
जब कभी बारिश की कुछ बूंदे
मेरे तन को भिगोएंगी
मन को कुछ गीले एहसासों में डुबोएंगी
मैं अकेला बादलों के साथ बरसूंगा शायद
तेरे साथ भीग जाने को फिर
एक बार तरसूंगा शायद
अपनी खाली हथेली देख
तेरे हाथों के निशान ढूंढूंगा मैं
पलकें बंद कर तुझे
महसूस करूंगा मैं
तेरी दी हुई चंद खुशियों के दम पर
कभी - कभी मैं भी खुश हो लूंगा शायद
कुछ इस तरह से मेरी जिंदगी
तुंझे जिंदगी भर याद करूंगा शायद